Saturday, September 2, 2017

शांति के अमर दूत - नेल्सन मंडेला

आज मुझे नेल्सन मंडेला की आत्मकथा ' लोंग वॉक टु फ़्रीडम ' पर आधारित फिल्म देखने का अवसर मिला । इस आत्मकथा को पढ़ने के लिए मैं काफी दिनों से प्रयासरत हूँ ।कई पुस्तकों की दुकानों मे इस पुस्तक को खरीदने की कोशिश की लेकिन यह यहाँ कहीं उपलब्ध नहीं हो सका। आखिर इसे ऑन लाईन खरीद रहा हूँ । हर भारतीय के लिए महात्मा गांधी के जीवन और स्वाधीनता संग्राम में भूमिका को  जानना जितना आवश्यक है, उसी तरह दक्षिण आफ्रिका को अंग्रेजों की रंगभेदी और नस्लवादी अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के उनके संघर्ष को जानना भी हर सभ्य देश के नागरिकों के लिए (मुझे लगता है की ) जरूरी है । नेल्सन मंडेला की लड़ाई, गांधीजी की लड़ाई से भी कहीं ज्यादा अन्याय, आतंक, अत्याचार, हिंसा से भरपूर 27 वर्षों तक सश्रम कारावास का दंड (जिसे अन्यायपूर्वक उनको दिया गया था ) सहते हुए  भी जिस व्यक्ति ने अपनी लौह आत्मशक्ति के बल पर घोर अमानवीय हिंसायुक्त रंगभेदी शासन से उत्पीड़ित जनता के लिए उन्होंने जिस तरह से अहिंसा के रास्ते, अपने समूची जाति को नया मुक्त, स्वतंत्रता और समानता का अधिकार दिलाया, यह विश्व के पराधीन देशों की आज़ादी की लड़ाइयों के इतिहास में सर्वोन्नत स्थान रखता है । जिस तरह से रॉबिन द्वीप के नारकीय कारागार में बंदी के रूप में उन्हें 18 वर्षों तक भयानक हिंसात्मक तरीके से रखा गया, किसी भी व्यक्ति से उन्हें मिलने का अधिकार नहीं दिया गया, उस दौरान उनकी पत्नी से अंग्रेज़ पुलिस ने दुराचार किया, उन्हें बिना कारण जेल में बंद रखा गया, ( कुछ समय तक ) उनके बच्चों के साथ निर्मम व्यवहार किया गया, उनके पुत्र की मृत्यु की खबर तो उन्हें दी गई किन्तु उन्हें पुत्र के अंतिम संस्कार के लिए भी नहीं रिहा किया गया, साल मे केवल दो चिट्ठियाँ लिखने की उन्हें सुविधा दी गई और उनके लिखे हुए पत्र उनकी पत्नी तक नहीं पहुँचते थे ।
फिर भी वे ऐसे कारागार में केवल अपने मनोबल पर ही जीवित रहे । 18 वर्ष के बाद उन्हें रॉबिन द्वीप के एकांतिक कारागार से मुख्य भूभाग के अन्य कारागार में कुछ सुविधाओं के साथ आजीवन कारावास के दंड को पूरा करने के लिए स्थानांतरित किया गया । उनके साथ आजीवन कारावास का दंड भोगने वाले उनके सात,आठ साथी भी थे । इन सब पर आरोप था, सरकार के खिलाफ बगावत करने का और देशवासियों को सत्ता के खिलाफ हिंसा के लिए भड़काने का ।
नेल्सन मंडेला एक सक्षम वकील थे । उन्होंने कानून की पढ़ाई की थी । वे एक कुशल वक्ता, दृढ़ और मजबूत नायकत्व के लक्षणों से भरपूर बहादुर नेता बने ।
उन्होने जो यातनाएँ सहीं, गांधी बापू को उतनी यातनाएँ नहीं झेलनी पड़ीं । किन्तु मंडेला के सामने गांधी जी का उदाहरण मौजूद था । अत्याचारी गोरों  को उन्होंने अपनी सहनशीलता और दृढ़ता से 28 वर्षों के बाद ही सही रिहा करने के लिए मजबूर कर दिया । इस बीच उनके संगर्ष को अंतर राष्ट्रीय समर्थन मिला और अंत में प्रिटोरिया की गोरी अन्यायी, रंगभेदी सरकार को नेल्सन मंडेला ( जो जेल में सजा काट रहे थे ) बातचीत के लिए बाइज्जत, बुलाना पड़ा।   नेल्सन मंडेला एक महान राजकर्मी statesman के रूप में उन्होंने शांति वार्ता की । अंग्रेजों को डर था, कि यदि मंडेला की शर्तों के अनुसार आफ्रिका के मूल निवासियों को आज़ादी दे दी जाए तो वे उन पर पलटवार करनेगे और उन्हें मार डालेंगे, जो कि वास्तव में वहाँ के मूल निवासी अपने खून का बदला लेना ही चाहते थी, किन्तु मंडेला ने इसे खारिज किया और शांति के लिए ही उन्होंने आदी और समानता की मांग की । इससे पहले अंग्रेजों ने मंडेला को सत्ता का लोभ दिया, उन्हें सरकार में शामिल करने का प्रस्ताव रखा और उन्हें रिहा करने की बात काही, किन्तु मंडेला व्यक्तिगत आज़ादी नहीं चाहते थे, इसलिए उन्होंने सिरे से ऐसे प्रस्ताव को तिरस्कृत कर दिया । इस तरह अंग्रेज़ शासकों और मंडेला के बीच कई दौर की बातचीत हुई । आखिर दक्षिण आफ्रिका के ब्रिटिश शासकों को मंडेला के शांति प्रस्ताव को स्वीकार करना पड़ा । इधर मंडेला के देशवासी अंग्रेजों के साथ समझौता करने के लिए तैयार नहीं थे । वे खून का बदला खून से ही लेना चाहते थे, यहीं पर नेल्सन मंडेला का अहिंसावादी नेतृत्व बिश्व के इतिहास में एक मिसाल बन गया । उन्होंने अपने साथियों और देशवासियों को अंग्रेजों द्वारा किए अन्यायपूर्ण व्यवहार और सदियों के अत्याचार के बावजूद उन्हें माफ कर देने के लिए प्रतिहिंसा की भावना से भरे हुए युवाओं और बुजुर्गों को मनाया । उन्हें शांति की सीख दी । उन्हें समझाया कि यदि वे इस अवसर को हिंसा में तबदील करेंगे तो उन्हें कभी शांतिपूर्ण जीवन नसीब नहीं हो सकेगा, उनके सन्तानें कभी जीवित नहीं रह सकेंगी, उन्हें हिंसा और शांति में से शांति का ही मार्ग स्वीकार करना होगा । नेल्सन मंडेला लोकनायक बन चुके थे । वे किसी भी शर्त पर देश को हिंसा और नफरत की आग में नहीं जलते देखना चाहते थे । वे गृह युद्ध नहीं होने देना चाहते थे । उनके इस शांति के प्रस्ताव का विरोध उनकी पत्नी ने भी किया जिस कारण उन्हें पत्नी से भी अलग होना पड़ा । उन्होंने पत्नी को शांति का मार्ग अपनाकर उनका साथ देने के लिए आग्रह किया, किन्तु वे नहीं मानीं, वह अंग्रेजों के साथ युद्ध करना चाहती थीं, जो कि आत्मघाती था ।
नेल्सन मंडेला की शर्त के अनुसार चुनाव करवाए गए । पहली बार एक व्यक्ति एक वोट का अधिकार हरेक वयस्क आफ्रिका निवासी को प्राप्त हुआ, जिसका दक्षिण  आफ्रिकावासियों  ने भरपूर किया । मंडेला राष्ट्रपति के रूप में चुन लिए गए । और फिर उन्होंने एक ने समाज, राष्ट्र का निर्माण किया । वे जीवनपर्यंत हिंसा और अन्याय के विरोध मेह ही खड़े रहे । 95 वर्ष की आयु तक वे देश वासियों की सेवा करते रहे । उन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया । सन्र 2013 में उनकी मृत्यु हुई । उनकी मृत्यु पर सारा संसार शोक में डूब गया । एक महान राजनयिक, अहिंसावादी महामानव ने एक पूरी जाति को नस्लवादी नफरत और हिंसा के रास्ते से दूर कर उन्हें शांति के मार्ग पर स्थिर किया । 

No comments:

Post a Comment